निवेशक हमेशा लाभ कमाने के लिए नए अवसरों की तलाश करते हैं। और न केवल शुरुआती बल्कि अनुभवी निवेशकों के लिए भी IPO हमेशा आकर्षण का केंद्र रहा है। IPO के कॉन्सेप्ट को बेहतर ढंग से समझने के लिए आईपीओ फुल फॉर्म (IPO Full Form in Hindi) समझना भी बेहद जरूरी है।
IPO कुछ हद तक निवेशकों और कंपनियों दोनों का फायदा करते हैं. IPO के साथ एक कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट होती है और निवेशक भी इससे अच्छा ख़ासा मुनाफा कमा सकते हैं। इसलिए, यदि आप भी एक IPO में निवेश करना चाह रहे हैं, तो आईपीओ को अच्छे से समझना बेहद ज़रूरी है।
चलो शुरू करें!
IPO Ka Full Form in Hindi है – “इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग”।
यह किसी कंपनी द्वारा ‘सार्वजनिक’ मतलब पब्लिक होने के लिए उठाया गया पहला कदम है। इसका सीधा सा मतलब है कि कोई कंपनी IPO के द्वारा स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट होने के योग्य हो जाती है।
कंपनी के सार्वजनिक होने का फैसला करने के कई कारण हैं।
प्राथमिक मकसद, हालांकि, वही रहता है: पैसा जुटाना। अब, यह पैसा रोज़मर्रा के खर्चों को कवर करने, कर्ज़ों को चुकाने, बिज़नेस का विस्तार करने, मशीनरी खरीदने आदि के लिए उत्पन्न की जा सकती है।
किसी कंपनी के सार्वजनिक होने का दूसरा कारण उसकी लोकप्रियता बढ़ाना है। एक बार जब कोई कंपनी सार्वजनिक हो जाती है, तो यह खुदरा निवेशकों के लिए उपलब्ध होती है, जिससे इसकी लोकप्रियता बढ़ती है।
इसके अलावा भी बहुत से कारण होते हैं। आइए अब IPO के अर्थ को विस्तार से समझते हैं।
मान लीजिए कि आपका ऑटोमोबाइल (Automobile) का व्यवसाय है और आप इसे कुछ और शहरों तक पहुँचाने की योजना बना रहे हैं। लेकिन यहां समस्या यह है कि आपके पास उतना पैसा नहीं है, जितना चाहिए। ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे?
या तो आपने फंड जुटाने के लिए निवेशकों से संपर्क करेंगे या बैंक से कर्ज लेंगे। सही बात है ना?
लेकिन क्या आपने पैसा जुटाने का कोई और तरीका सोचा है?
आईपीओ ही ऐसे ही सवालों का समाधान है। आईपीओ एक निजी कंपनी को अपने शेयरों को स्टॉक एक्सचेंजों में लाने की सुविधा देता है। इससे आप और हम जैसे निवेशक कंपनी का हिस्सा बन सकते हैं। और साथ में कंपनी को भी फंडिंग और विजिबिलिटी मिलती है।
सभी का फायदा, है ना?
किसी कंपनी के लिए अपना IPO लॉन्च करने की एक पूरी प्रक्रिया होती है। सबसे पहला कदम है, सेबी की मंजूरी लेना। फिर, कंपनी द्वारा सभी विवरण प्रदान करने और सेबी द्वारा मंजूरी दिए जाने के बाद, उसके बाद ही विज्ञापन और घोषणाएं निकलती हैं।
आईपीओ से जुड़ी कई अन्य शर्तें हैं; आइए जल्दी से उन पर भी एक नजर डालते हैं।
DRHP का पूरा मतलब – ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस है।
अब आप सोच रहे होंगे कि चलो फुल फॉर्म तो ठीक है लेकिन वास्तव में DRHP क्या है? डीआरएचपी एक दस्तावेज है जो उस कंपनी की ओर से एक प्रस्ताव पेश करता है जो बाजार में अपना IPO लॉन्च करने के लिए तैयार है।
इस काम में मर्चेंट बैंकर का भी इस्तेमाल होता है।
मर्चेंट बैंकर इस ऑफ़र दस्तावेज़ का ड्राफ्टिंग तैयार करने के लिए ज़िम्मेदार हैं, और फिर इसे सेबी को प्रस्तुत किया जाता है।
इस दस्तावेज़ में, कंपनी आईपीओ के संबंध में सभी जानकारी प्रदान करती है। उदाहरण के लिए, इसमें कंपनी के उद्देश्य, वह राशि जो वह जुटाने का इरादा रखती है, ज़रूरी तारीखें आदि शामिल हैं।
इसके अलावा, जो जानकारी इस दस्तावेज़ को बेहद महत्वपूर्ण बनाती है, वह कंपनी की मूल जानकारी (आय विवरण, बैलेंस शीट और सालाना रिपोर्ट) और भविष्य के अन्य लक्ष्य हैं।
सेबी DRHP को चेक करता है, अपनी तरफ से दी गयी जानकारी की छानबीन करता है और यदि आवश्यक हो तो बदलाव का सुझाव देता है। इसमें कंपनी की सभी वित्तीय जानकारी, निवेशकों के नाम आदि भी शामिल होते हैं ।
आगे चल कर, इसी डीआरएचपी को चेक करने पर एक निवेशक को यह तय करने में मदद मिल सकती है कि आईपीओ के लिए आवेदन करना है या नहीं।
आईपीओ आवेदन से जुड़ा एक अन्य सामान्य शब्द “एएसबीए या आस्बा” (ASBA) है। ASBA का फुल फॉर्म है “एप्लिकेशन सपोर्टेड बाय ब्लॉक्ड अमाउंट”।
यह आईपीओ के आवेदन की एक प्रक्रिया है, जिसमें आईपीओ में शेयर्स बंटने के समय तक खाते में राशि ब्लॉक्ड (blocked) रहती है।
यह कैसे काम करता है?
जब भी आप आईपीओ के लिए आवेदन कर रहे होते हैं, तो आपके खाते से राशि डेबिट नहीं की जाती है क्योंकि IPO खुलने का बाद आपको शेयर्स मिलने की कोई गारंटी नहीं होती है।
इसलिए, जब आपको आईपीओ के बाद शेयर्स सच में आपके खाते में आने वाले होते हैं तभी राशि आपके खाते से डेबिट कर दी जाती है। हालाँकि, यदि आईपीओ खुलने के बाद शेयर्स आपको नहीं मिलते हैं, तो राशि आपके उपयोग के लिए वापिस अनब्लॉक हो जाती है।
अगर आप सोच रहे थे कि आईपीओ सुरक्षित है या नहीं? तो इसका उत्तर यह है कि आपको बिना किसी कारण के आपके पैसे डेबिट होने के बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, और यह बिल्कुल सुरक्षित है।
इसलिए, ASBA के माध्यम से आईपीओ के लिए आवेदन करना अपना आवेदन जमा करने का सबसे अच्छा तरीका है।
IPO की दुनिया में इस्तेमाल किया जाने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण शब्द “जीएमपी” or GMP है, जिसका पूरा मतलब (GMP full form in hindi) “ग्रे मार्केट प्रीमियम” है।
अब, यदि आपने कभी आईपीओ के लिए आवेदन किया है तो शायद आपने सुना होगा के अगर GMP ज़्यादा है तो IPO बढ़िया रहेगा? लेकिन क्या ये हमेशा सच रहता है?
ग्रे मार्केट प्रीमियम वह अतिरिक्त राशि है जो एक निवेशक ग्रे मार्केट में प्राइस बैंड के ऊपर भुगतान करने को तैयार है। ग्रे मार्केट वह जगह है जहां आईपीओ के शेयरों का अनौपचारिक मतलब Unofficial रूप से कारोबार होता है।
एक आईपीओ का GMP उन लाभों को तय करने में भी मदद करता है जो एक लिस्टिंग के दिन वो लोग प्राप्त कर सकते हैं जिनको IPO के शेयर मिले हैं। आईपीओ के लिए आवेदन करना है या नहीं, यह तय करने से पहले बहुत सारे निवेशक इसी प्रीमियम को देखते हैं। GMP जितना बेहतर होगा, IPO लिस्टिंग गेन की संभावना उतनी ही बेहतर होगी।
उदाहरण के लिए- एक आईपीओ शेयर की कीमत ₹300 है, और जीएमपी ₹200 है, इसका मतलब है कि एक निवेशक सूची में जाने वाले शेयरों के लिए ₹500/शेयर का भुगतान करने को तैयार है।
GMP आईपीओ की मांग को काफी हद तक प्रभावित करता है; इसलिए, यह निवेशक के निर्णयों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
आईपीओ का बाजार इस साल की शुरुआत से ही फल-फूल रहा है और काफी पूंजी पैदा करने में कामयाब रहा है।
लेकिन, जैसा कि आईपीओ का पूर्ण रूप बताता है, यह जनता को दिखाई देने के लिए कंपनी का प्रारंभिक कदम है। आईपीओ आने के बाद ही कोई कंपनी शेयर बाजार में लिस्ट होती है।
अगर आप भी आईपीओ के लिए अप्लाई करना चाहते हैं तो आज ही अपना डीमैट अकाउंट खोलें!