इन दिनों भारत में डेरिवेटिव बाजार तेजी से महत्व प्राप्त कर रहा हैं। भारत में डेरिवेटिव की शुरुवात 2000 साल में हुई| साल दर साल ईनकी लोकप्रियता कई गुना बढ़ गई हैं। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज में डेरिवेटिव सेगमेंट में दैनिक कारोबार करोड़ों में खेल रहा हैंं| ये नकद बाजारों के कारोबार की तुलना में कई गुना अधिक हैं।
अगर आप जानना चाहते हैंं की डेरिवेटिव्ज मार्केट क्या होते हैंं (what is derivative market in hindi) तो पहले ये जान लेते हैंं की डेरिवेटिव्ज क्या होते हैंं| डेरिवेटिव्ज वित्तीय कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैंं जो स्टॉक, कमोडिटीज, करेंसी आदि एसेट्स से अपना मूल्य प्राप्त करते हैंं| ये दो या अधिक पार्टियों के बीच सेट होते हैंं|
डेरिवेटिव ट्रेडिंग (Derivative trading) एक्सचेंज के माध्यम से या काउंटर पर की जा सकती हैं। ओवर-द-काउंटर ट्रेडिंग दो निजी पार्टियों के बीच काम करती हैं| ये किसी सेंट्रल अथॉरिटी द्वारा नियंत्रित नहीं की जाती। अगर दो निजी पक्ष कॉन्ट्रैक्ट पर सहमत हैंं, तो इसमें काउंटर पार्टी रिस्क का जोखिम होता हैंं|
भारतीय बाजारों में, फ्यूचर्स और ऑप्शंस (वायदा और विकल्प) स्टैंडर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स में आते हैंं| ईनका एक्सचेंजों पर स्वतंत्र रूप से कारोबार किया जा सकता हैं।
डेरिवेटिव्ज मार्केट का मतलब (Derivatives Market Meaning) होता हैंं एक ऐसा वित्तीय बाजार जिसमे वित्तीय साधनों की लेनदेन की जाती हैंं| वित्तीय साधनों में शामिल हैंं एसेट्स के मूल्य पर आधारित फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट्स और ऑप्शंस भारतीय डेरिवेटिव्ज मार्केट में डेरिवेटिव ट्रेडिंग एक फायदेमंद माध्यम के रूप में कार्य करती हैं|
डेरिवेटिव्ज मार्केट में आप फ्यूचर समय पर एसेट्स को एक फिक्स्ड कीमत पर खरीद या बेच सकते हैंं| डेरिवेटिव्ज बाजार में एसेट्स की कीमत की गतिविधियों से लाभ उठाने के लिए डेरिवेटिव्ज का कारोबार किया जाता हैं| डेरिवेटिव्ज आपको ज्यादा लिक्विडिटी भी प्रदान करते हैंं। चॉइस इंडिया जैसी ब्रोकरेज फर्म्स अपने ग्राहकों को ज्यादा विकास दर के लिए फ्यूचर्स ट्रेडिंग के साथ-साथ ऑप्शन ट्रेडिंग करने की अनुमति देते हैंं। डेरिवेटिव्ज मार्केट ग्राहकों की जोखिमों को हेज करने, स्पेक्युलेशन करने और काफी कम अवधि में रिटर्न्स अर्जित करने के लिए संतुलित और पसंदीदा उपकरण के रूप में कार्य करता हैं।
डेरिवेटिव्ज मार्केट में चार तरह के डेरिवेटिव्ज होते हैंं| ये डेरिवेटिव के प्रकार (types of Derivative) निचे दिए गए हैंं -
ऑप्शंस वह वित्तीय डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स हैंं जो खरीदार को एक विशिष्ट अवधि के दौरान एक विशिष्ट दाम (स्ट्राइक मूल्य) पर एक एसेट को खरीदने या बेचने का अधिकार देते हैंं| लेकिन इन्हे खरीदना या बेचना जरुरी या बाध्यकारक नहीं होता।
फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स स्टैण्डर्ड कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैंं जो विनिमय बाजार (एक्सचेंजस) में कारोबार करते हैंं। ये धारक को संबंधित एसेट को एक विशिष्ट तिथि पर सहमत मूल्य पर खरीदने या बेचने की अनुमति देते हैंं। फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स में शामिल पार्टियों के पास कॉन्ट्रैक्ट्स पूरा करने का न केवल अधिकार होता हैं, बल्कि कॉन्ट्रैक्ट को सहमति के अनुसार पूरा करने का दायित्व भी होता हैं।
फॉरवर्ड्स कॉट्रैक्टस एक तरह से फ्यूचर कॉट्रैक्टस के समान होते हैंं| फॉरवर्ड्स कॉट्रैक्टस में भी शामिल पार्टियों के पास कॉन्ट्रैक्ट्स पूरा करने का न केवल अधिकार होता हैं, बल्कि कॉन्ट्रैक्ट को पूरा करने का दायित्व भी होता हैं। हालांकि, फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट ओवर-द-काउंटर उत्पाद हैंं| ईसका ये अर्थ हैं कि वे नियमित नहीं हैंं और विशिष्ट ट्रेडिंग नियमों से बंधे नहीं हैंं।
स्वैप्स वह वित्तीय डेरिवेटिव कॉन्ट्रैक्ट्स हैंं जिनमें दो धारक या कॉन्ट्रैक्ट्स के पक्ष शामिल होते हैंं। निवेशकों द्वारा दर्ज किए गए सबसे आम स्वैप कॉन्ट्रैक्ट्स हैंं ब्याज दर स्वैप। स्वैप्स का कारोबार विनिमय बाजार में नहीं होता हैं। स्वैप कॉन्ट्रैक्ट्स का कारोबार काउंटर पर किया जाता हैं क्योंकि, दोनों पक्षों की जरूरतों के अनुरूप स्वैप कॉन्ट्रैक्ट्स का कस्टमाईज़ेबल होना जरुरी होता हैंं|
डेरिवेटिव्ज मार्केट में ट्रेडिंग करने के लिए कई ब्रोकर्स अपनी स्पेशल ऑफर्स देते हैंं| चॉइस इंडिया अपने ग्राहकों को डेरिवेटिव्ज ट्रेडिंग में विशेष प्लॅन्स उपलब्ध करता हैंं| चॉइस (Choice) के साथ डेरिवटिव ट्रेडिंग के लाभ निचे दिए गए हैंं -
चॉइस इंडिया के साथ, आप विभिन्न एक्सचेंजों में भारत के सभी प्रमुख डेरिवेटिव बाजारों में अपनी सहूलियत से ट्रेडिंग कर सकते हैंं।
चॉइस इंडिया निवेशकों को टेलीफोन पर डेरिवेटिव्स में ट्रेडिंग के लिए एक नंबर प्रदान करता हैंं|
चॉइस इंडिया अपने ग्राहकों को उनकी पसंद के अनुसार फ्यूचर्स और ऑप्शंस दोनों में ट्रेड करने की अनुमति देते हैंं।
ग्राहक मार्केट समय के दौरान या तो मार्केट ऑर्डर देकर या छुट्टियों और गैर-मार्केट घंटों के दौरान लिमिट ऑर्डर देकर डेरिवेटिव ट्रेडिंग कर सकते हैंं|
रिस्क मैनेजमेंट के लिए और नुकसान की किसी भी संभावना से खुद को बचाने के लिए, डेरिवेटिव मार्केट आपको बाजार में अपनी स्थिति को हेज करने की अनुमति देता हैं।
आपके लिए डेरिवेटिव मार्केट में ट्रेडिंग करके अधिकतम फल प्राप्त करने के लिए ट्रेडिंग आइडिया के एक्सपर्ट सुझाव उपलब्ध कराते हैंं।
डेरीवेटिव मार्केट के साझेदार मोटे तौर पर निम्नलिखित चार समूहों में वर्गीकृत किए जाते हैंं -
हेजिंग तब होती हैं जब कोई व्यक्ति विनिमय बाजारों में मूल्य अस्थिरता के जोखिम को कम करने के लिए वित्तीय बाजारों में निवेश करता हैं| और भविष्य के मूल्य के बदलाव की रिस्क को समाप्त करता हैंं। हेजिंग के क्षेत्र में डेरिवेटिव सबसे लोकप्रिय उपकरण हैंं।
स्पेक्युलेशन्स करना बाजार की सबसे आम गतिविधि हैं जिसमें एक वित्तीय बाजार के ट्रेडर्स भाग लेते हैंं। निवेशकों के लिए यह एक जोखिम भरी गतिविधि हैंं। इसमें किसी भी वित्तीय साधन या संपत्ति की खरीद शामिल होती हैं|
वित्तीय बाजारों में आर्बिट्राज करना रिटर्न्स के लिए एक सामान्य लाभ कमाने वाली गतिविधि हैं| इसमें बाजार की कीमत की अस्थिरता से मुनाफा कमाया जाता हैंं|
वित्त उद्योग में, मार्जिन का मतलब निवेशक द्वारा जमा की गई कोलैटरल डिपोजिट हैं| ये एक वित्तीय साधन हैं जो इन्वेस्टमेंट से जुडी क्रेडिट रिस्क को कवर करता हैं|
डेरिवेटिव्ज वित्तीय कॉन्ट्रैक्ट्स होते हैं जो एसेट्स से अपना मूल्य प्राप्त करते हैं। फॉरवर्ड, फ्यूचर कॉन्ट्रैक्ट, ऑप्शंस और स्वैप ये डेरिवेटिव के प्रकार हैं| डेरिवेटिव लीवरेज्ड इंस्ट्रूमेंट हैंं जो जोखिम और रिटर्न्स को बढ़ाते हैंं। चॉइस इंडिया जैसे एक्सपर्ट डेरिवेटिव्ज सर्विस प्रोवाइडर के साथ आप अपना ट्रेडिंग खाता खोल सकते हैं और आप अपनी अच्छे रिटर्न्स की यात्रा शुरू कर सकते हैं|